मोहर्रम इस्लामी कैलेंडर (हिजरी सन) का पहला महीना है और यह मुसलमानों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस महीने का 10वां दिन (यौम-ए-आशुरा) विशेष महत्व रखता है। मोहर्रम को लेकर सुन्नी और शिया मुसलमानों की अलग-अलग मान्यताएं हैं, लेकिन दोनों ही समुदाय इसे गंभीरता से मनाते हैं। आइए, विस्तार से जानते हैं कि मोहर्रम क्यों मनाया जाता है, इसका इतिहास क्या है, और इसे कैसे मनाते हैं
1. मोहर्रम का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
इस्लामिक कैलेंडर में मोहर्रम का स्थान
इस्लामी साल का पहला महीना होने के कारण मोहर्रम को "अल-हराम" (पवित्र महीना) भी कहा जाता है। इस्लाम से पहले भी अरब के लोग इस महीने को युद्धविराम और शांति का समय मानते थे।
आशुरा (10 मोहर्रम) का महत्व
सुन्नी और शिया मुसलमानों के लिए आशुरा के दिन का अलग-अलग महत्व है:
सुन्नी मुसलमानों की मान्यताएं
1. हजरत मूसा (मोसेस) की विजय
- इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, 10 मोहरर्म को हजरत मूसा और उनके अनुयायियों को फिरौन के अत्याचार से मुक्ति मिली थी। अल्लाह ने लाल सागर को दो हिस्सों में विभाजित करके बनी इस्राइल को सुरक्षित पार कराया और फिरौन की सेना को समुद्र में डुबो दिया।
- पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) ने जब मदीना में देखा कि यहूदी इस दिन रोज़ा रखते हैं, तो उन्होंने कहा कि "हम मूसा के साथियों से ज़्यादा नज़दीक हैं" और मुसलमानों को भी इस दिन रोज़ा रखने की सलाह दी।
2. अन्य पैगंबरों से जुड़ी घटनाएँ
- इसी दिन हजरत नूह (नोह) की नाव ज़मीन पर लगी थी।
- हजरत यूनुस (जोनाह) मछली के पेट से बाहर निकले थे।
- हजरत ईसा (यीशु) का जन्म और उन्हें आसमान पर उठाया जाना भी इसी दिन हुआ माना जाता है।
3. पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) का आशुरा का रोज़ा
- पैगंबर साहब ने 9 और 10 मोहर्रम को रोज़ा रखने की सलाह दी, ताकि यहूदियों से अंतर स्पष्ट हो।
शिया मुसलमानों की मान्यताएं
1. कर्बला की लड़ाई और इमाम हुसैन की शहादत
- 10 मोहर्रम, 61 हिजरी (680 ईस्वी) को इराक के कर्बला में हजरत इमाम हुसैन (पैगंबर मुहम्मद के नवासे) और उनके 72 साथियों को यज़ीद की सेना ने शहीद कर दिया।
- यज़ीद एक अत्याचारी शासक था, जिसने इस्लामी सिद्धांतों को तोड़कर अपनी मनमानी की। इमाम हुसैन ने उसकी बात मानने से इनकार कर दिया और न्याय के लिए लड़ते हुए शहादत पाई।
2. शोक और मातम की परंपरा
- शिया समुदाय इस घटना को "कर्बला का त्रासदी" मानता है और पूरे महीने शोक मनाता है।
- वे ताजिया जुलूस निकालते हैं, मजलिस (शोक सभाएँ) आयोजित करते हैं और सीना-ज़नी (सीने पर चोट मारकर शोक प्रकट करना) करते हैं।
2. मोहर्रम कैसे मनाया जाता है?
सुन्नी मुसलमानों के रीति-रिवाज
1. रोज़ा (उपवास) रखना
- पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) के अनुसार, 9 और 10 मोहर्रम या 10 और 11 मोहर्रम को रोज़ा रखना सुन्नत है।
- मान्यता है कि इससे पिछले साल के गुनाह माफ हो जाते हैं।
2. दान-पुण्य करना
- इस दिन गरीबों को खाना खिलाना, कपड़े देना और दान करना अच्छा माना जाता है।
3. इबादत और कुरान पढ़ना
- कई लोग इस दिन अतिरिक्त नमाज़ पढ़ते हैं और कुरान की तिलावत करते हैं।
शिया मुसलमानों के रीति-रिवाज
1. मातम और जुलूस
- शिया समुदाय 10 मोहर्रम (आशुरा) को काले कपड़े पहनकर जुलूस निकालता है।
- ताजिया (इमाम हुसैन के मकबरे की प्रतिकृति) बनाकर उसे दफनाया जाता है।
2. मजलिस (शोक सभा)
- इमाम हुसैन की शहादत की कहानी सुनाई जाती है और लोग रोते हुए उन्हें याद करते हैं।
3. सीना-ज़नी और ज़ंजीर से मातम
- कुछ लोग सीने पर चोट मारकर (मातम) या ज़ंजीरों से स्वयं को चोट पहुँचाकर हुसैन की पीड़ा को याद करते हैं। (हालाँकि, कई इस्लामिक विद्वान इसे गलत मानते हैं।)
4. रोज़े और खाने-पीने में संयम
- कुछ शिया परिवार 10 मोहर्रम तक पानी नहीं पीते, क्योंकि इमाम हुसैन और उनके परिवार को कर्बला में पानी से वंचित रखा गया था।
3. मोहर्रम से मिलने वाली सीख
- अन्याय के सामने न झुकना: इमाम हुसैन ने यज़ीद की गुलामी स्वीकार करने के बजाय शहादत को चुना, जो आज भी न्याय के लिए लड़ने वालों के लिए प्रेरणा है।
- धर्म और सच्चाई के लिए बलिदान: कर्बला की घटना सिखाती है कि सच्चाई के लिए संघर्ष करना ही असली जीत है।
- एकता और भाईचारा: मोहर्रम हमें सिखाता है कि अत्याचार के खिलाफ़ सभी को एकजुट होकर खड़ा होना चाहिए।
4. मोहर्रम के बारे में कुछ रोचक तथ्य
- मोहर्रम के महीने में युद्ध करना हराम (वर्जित) माना जाता था।
- भारत, पाकिस्तान, ईरान और इराक में मोहर्रम बड़े पैमाने पर मनाया जाता है।
- ताजिया की परंपरा मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित है।
मोहर्रम न सिर्फ़ एक धार्मिक महीना है, बल्कि यह इंसाफ, सच्चाई और बलिदान का प्रतीक है। चाहे सुन्नी इसे रोज़े और इबादत के रूप में मनाएँ या शिया इमाम हुसैन की शहादत को याद करें, यह महीना सभी मुसलमानों को एकता और न्याय की राह दिखाता है।
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