खैबर की जंग क्यों और किसके बीच हुई | Khaybar War in Hindi



खैबर की जंग इस्लामिक इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है, जो 7 हिजरी (628 ईस्वी) में मदीना के उत्तर-पश्चिम में स्थित खैबर के किलों में लड़ी गई थी। यह युद्ध इस्लाम के प्रारंभिक दौर में पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) और उनके अनुयायियों के बीच यहूदियों की एक शक्तिशाली बस्ती खैबर के निवासियों के खिलाफ हुआ था। इस ब्लॉग में हम खैबर की जंग के कारणों, पृष्ठभूमि, और इसके महत्व को विस्तार से समझेंगे। इस जंग में हजरत अली का महत्वपूर्ण योगदान रहा। हजरत अली का दूसरा नाम हैदर है


खैबर की जंग की पृष्ठभूमि

खैबर मदीना से लगभग 150 किलोमीटर उत्तर में एक उपजाऊ क्षेत्र था, जहां यहूदी कबीले, मुख्य रूप से बनू नज़ीर और बनू कुरैजा, रहते थे। ये कबीले व्यापार और खेती में माहिर थे और उनके पास मजबूत किले थे, जो उन्हें सैन्य दृष्टि से शक्तिशाली बनाते थे। खैबर के यहूदी कबीलों का मदीना के मुसलमानों के साथ तनावपूर्ण इतिहास रहा था, खासकर बनू नज़ीर के साथ, जिन्हें कुछ समय पहले मदीना से निर्वासित किया गया था।


खैबर की जंग से पहले, मुसलमानों और मक्का के कुरैश के बीच कई युद्ध हो चुके थे, जैसे कि बदर, उहुद, और खंदक की जंग। खंदक की जंग (5 हिजरी) में खैबर के यहूदियों ने कुरैश और अन्य कबीलों के साथ गठबंधन करके मुसलमानों के खिलाफ साजिश रची थी। इस गठबंधन का उद्देश्य मदीना पर हमला करके इस्लाम को कमजोर करना था। हालांकि, खंदक की जंग में मुसलमानों की जीत हुई, लेकिन यह स्पष्ट हो गया कि खैबर के यहूदी मुसलमानों के लिए एक निरंतर खतरा बने हुए थे।


खैबर की जंग के कारण

खैबर की जंग के कई प्रमुख कारण थे, जो निम्नलिखित हैं:

1. यहूदियों की सैन्य साजिशें: खैबर के यहूदियों ने कुरैश और अन्य अरब कबीलों के साथ मिलकर मुसलमानों के खिलाफ कई बार साजिश रची थी। खंदक की जंग में उनकी भूमिका ने यह साबित कर दिया था कि वे मदीना के लिए एक बड़ा खतरा थे। उनकी सैन्य गतिविधियों को रोकना आवश्यक हो गया था।

2. मदीना की सुरक्षा: खैबर एक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान था, जहां से मदीना पर हमले की योजना बनाई जा सकती थी। खैबर के किलों को जीतना मुसलमानों के लिए मदीना की सुरक्षा सुनिश्चित करने का एक तरीका था।

3. आर्थिक महत्व: खैबर एक समृद्ध क्षेत्र था, जो अपनी खेती और व्यापार के लिए जाना जाता था। यहूदी कबीलों के पास वहां विशाल खजाने और संसाधन थे। इन संसाधनों पर नियंत्रण प्राप्त करना मुसलमानों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में मददगार साबित हो सकता था।

4. संधि का उल्लंघन: बनू नज़ीर और अन्य यहूदी कबीलों ने पहले मुसलमानों के साथ की गई संधियों का उल्लंघन किया था और खैबर के रास्ते से गुजरने वाले मुसलमान व्यापारियों को लूट लिया करते थे और उन्हें कत्ल कर दिया करते थे। इस विश्वासघात ने मुसलमानों को उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए प्रेरित किया।

5. इस्लाम के प्रसार में बाधा: खैबर के यहूदी कबीले इस्लाम के प्रसार को रोकने के लिए लगातार प्रयास कर रहे थे। उनकी गतिविधियां मुसलमानों के लिए एक चुनौती थीं, जिसे समाप्त करना आवश्यक था।


खैबर की जंग का घटनाक्रम

खैबर की जंग 7 हिजरी में शुरू हुई, जब पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) ने लगभग 1,600 मुसलमानों की सेना के साथ खैबर पर हमला किया। खैबर के यहूदी कबीलों के पास मजबूत किले थे, जिन्हें जीतना आसान नहीं था। युद्ध कई चरणों में लड़ा गया, जिसमें मुसलमानों को कई किलों पर कब्जा करने के लिए कठिन लड़ाई लड़नी पड़ी। यह लड़ाई 40 दिनों तक चली थी। क्योंकि मुसलमानो की सेना 39 दिन तक ख़ैबर के किले पर हमला करने के लिए जाती लेकिन खैबर के शूरवीर मरहब और अंतर के ललकार को सुनकर डर जाती और सेना वापस मदीना लौट जाती थी। 39 दिनों तक तक ये मामला चलता रहा। फिर 39वे दिन पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) ने कहा कि कल झंडा उसे दूंगा जो न ही कभी कोई जंग हारा है और न ही कभी किसी मैदान से भगा है। अगली सुबह झंडा हज़रत अली को दिया गया और उसी दिन हज़रत अली ने 900KG के खैबर के दरवाजे को अकेले ही उखाड़ फेंका और झंडे को पत्थर में गाड़ दिया और मरहम और अंतर को जंग के लिए ललकारा। फिर हज़रत अली और मरहब और अंतर के बीच लड़ाई हुई। इस लड़ाई में हज़रत अली ने मरहब और अंतर को मौत के घाट उतार दिया। इस तरह 40वे दिन मुसलमानों ने खैबर की जंग जीत ली और इतिहास रच दिया।


इस युद्ध में हजरत अली की भूमिका विशेष रूप से उल्लेखनीय रही। जब मुसलमानों को खैबर के सबसे मजबूत किले, किला-ए-कामूस, को जीतने में कठिनाई हो रही थी, तब पैगंबर ने हजरत अली को सेना का नेतृत्व सौंपा। हजरत अली ने अपनी वीरता और रणनीति से इस किले को जीत लिया, जिसके बाद अन्य किलों पर भी मुसलमानों का कब्जा हो गया।


खैबर की जंग के परिणाम

1. मुसलमानों की जीत: खैबर की जंग में मुसलमानों की निर्णायक जीत हुई। इस जीत ने मदीना की सुरक्षा को मजबूत किया और मुसलमानों की स्थिति को और सुदृढ़ किया।

2. आर्थिक लाभ: खैबर के उपजाऊ क्षेत्र और वहां के संसाधनों पर मुसलमानों का नियंत्रण हो गया। यह मुसलमानों के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक उपलब्धि थी।

3. यहूदी कबीलों के साथ समझौता: युद्ध के बाद, खैबर के यहूदियों के साथ एक समझौता हुआ, जिसके तहत वे अपनी जमीन पर खेती करने की अनुमति पा सके, लेकिन उन्हें अपनी फसल का आधा हिस्सा मुसलमानों को देना पड़ता था।

4. इस्लाम का प्रसार: खैबर की जीत ने इस्लाम के प्रभाव को और बढ़ाया। आसपास के कबीलों में मुसलमानों का दबदबा स्थापित हो गया, जिससे इस्लाम का प्रसार और तेज हुआ।


खैबर की जंग का महत्व

खैबर की जंग इस्लामिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी। इसने न केवल मदीना की सुरक्षा सुनिश्चित की, बल्कि मुसलमानों की सैन्य और आर्थिक शक्ति को भी बढ़ाया। यह युद्ध हजरत अली (हैदर) की वीरता और नेतृत्व का एक शानदार उदाहरण है, जिसे आज भी याद किया जाता है। इसके अलावा, इस जंग ने यह साबित किया कि मुसलमान एकजुट होकर किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं।

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